मोदी की भावुकता को समझें

मेशा दहाड़ कर बात करने वाला आज डबडबाई आंखों से देश की जनता से विनती कर रहा है।कह रहा है कि मैं माफी मांगता हूं मगर आपकी जिंदगी बचाने का कोई विकल्प नहीं था । आप समझ गए होंगे कि इस समय हम किसकी बात कर रहे हैं। हम भारत के  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात कर रहे हैं जिन्होंने कोरोना जैसी महामारी से इस देश को बचाने का द्रढ निश्चय कर लिया है। ठीक  उसी प्रकार से जैसे कोई संरक्षक बच्चों के फोड़े का आपरेशन कराने के समय उनके रोने पर दुखी तो होता है लेकिन आपरेशन करा  कर ही निश्चिंत हो पाता है क्योंकि उसे पता है कि यदि फोडमेको अभी चीरा न गया तो यह कभी भी जहरीला हो सकता है। उस समय को आने से रोकने के लिए अपने लोगों को अगर कष्ट भी उठाना पड़े तो उसे बर्दाश्त करने में पीछे नहीं हटना है। कोरोना उसी फोड़े की तरह है लेकिन यह फोड़ा तब दिखता है जब लाइलाज हो जाता है। इसीलिए कोरोना से बचने के लिए सबसे सुरक्षित तरीके को अपनाया जा रहा है। यह तरीका है लाकडाउन करके संक्रमण को रोकना। कोरोना की भयावहता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि  इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दुनिया  भर में  कोरोना से  723328 लोग प्रभावित थे और 34005 लोगों की मौत हो चुकी थी। कोरोना कितनी तेजी से  लोगो की जिंदगी निगल रहा है इसका अंदाजा इससे लगाया जा  सकता है कि  लगभग 12 घण्टे पहले तक दुनिया भर में कोरोना से मरने वालों की संख्या 32 हजार थी। इस प्रकार 2005 लोग सिर्फ 12 घण्टे  में अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठे।
भारत में स्थिति अभी उतनी भयावह नहीं है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक  यहां कोरोना से 1173 लोग प्रभावित थे और 32 लोगों की मौत हो चुकी थी। लगभग 12 घण्टे पहले यहां कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या 1024 थी और 27 लोगों की मौत हो चुकी थी। अमेरिका जैसे देशों में जहां अत्याधुनिक चिकित्सा के साधन उपलब्ध हैं फिर भी  वहां कोरोना की भयावहता को रोका नहीं जा सका। अमेरिका में 2000 लोगों की इस महामारी से मौतें हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसीलिए देश भर में लाकडाउन को कड़ाई से लागू करने के लिए कहा है। उनको लाकडाउन से हो रही परेशानी का अहसास है। उन्होंने कहा कि मैं लाकडाउन से हो रही परेशानी के लिए सभी लोगों से माफी मांगते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह कदम आपकी जिंदगी बचाने के लिए मजबूर होकर  उठाना पड़ा है। मन की बात कार्यक्रम में  मोदी ने कहा कि मेरे इस कड़े फैसले के चलते होरही परेशानियों से आप में से कुछ लोग नाराज भी होंगें। गरीबों को भी परेशानी हुई मगर 130 करोड़ की आबादी वाले देश के पास कोरोना से बचने के लिए और कोई विकल्प नहीं है।इन्सान की जान लेने की जिद लेकर बैठे कोरोना से निपटने का यही रास्ता था।श्री मोदी कहते हैं कि यह जीवन और मृत्यु के बीच की जंग है। इस जंग को हर कीमत पर हमें जीतना है। इसलिए कठोर कदम उठाने पड़े हैं। श्री मोदी ने भावनात्मक रूप से जोड़ने की भी अपील की है। वह कहते हैं कि सोशल डिस्टेन्स का गलत अर्थ न लगाया जाए।कोरोना बीमारी संक्रामक है और बीमार व्यक्ति का पता आसानी से नहीं लगाया जा सकता। बीमारी के लछण कयी दिन बाद पता् चलते हैं। इस बीच संक्रमित के सम्पर्क में रहने वाले भी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। इसीलिए सभी लोग एक दूसरे के सम्पर्क से बचें लेकिन भावनात्मक रूप से अवश्य जुड़े रहे ।मोदी ने कहा है कि पुराने दोस्तों नाते  रिश्तेदारों के घर नहीं जा सकते फिर भी उनसे लगातार सम्पर्क  बनाए रखें। सामाजिक दूरी बढ़ाएं और भावनात्मक दूरी घटाएं। बड़ा  अजीब सा लगता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से दूरी बनाकर रहते हुए भी हम भावनात्मक रूप से  जुड़े  रहें। सामाजिक दूरी का मतलब सम्पर्क खत्म करना नहीं है। सम्पर्क तो और भी बढ़ाने होंगें। हम जिनको जानते हैं उनकी तो चिंता करनी ही है। साथ ही हमें उनसे भी भावनात्मक रूप से जुड़ना है जिनको हम  पहले से जानते तक नहीं थै। अभी दो दिन पहले की बात है। बेटी के एक परिचित का फोन आया कि लखनऊ में गोमती नगर के ग्वारी क्रासिंग के पास कयी मजदूर फसे हुए हैं। उन लोगों ने एक मोबाइल नंबर भी दिया था। उस नम्बर पर बात की तब पता चला कि वहां  लगभग 40 लोग  झोपड़पट्टी में रह रहे हैं। औरतें और बच्चे भी हैं। तीन-चार दिन से कोई काम नहीं मिला।अब भूखे रहने की नौबत आ गयी है। उन्हें  हमने  एक मोबाइल नंबर और एक बेसिक फोन का नम्बर दिया। हरदोई के गांव अतरौली के ज्यादा लोग थे। एकने अपना नाम भैलू बताया ।उसी के फोन पर बात हो रही थी। भैलू ने बताया कि आपने जो बेसिक फोन नंबर दिया था वहाँ से दूसरा नम्बर दिया गया। उसे डायल करने पर कोई जवाब नहीं मिला। भैलू की और उनके साथ रहे लगभग चालीस लोगों की समस्या को करने के लिए हमने अपने प्रेस के साथियों का सहारा लिया। उनको भैलू का मोबाइल नंबर दिया और रिक्वैस्ट की कि इन लोगों तक सरकार की तरफ से अथवा समाजसेवा करने वालों के माध्यम से मदद पहुंचा दें। लगभग दो घंटे बाद पत्रकार साथी ने हमें  सूचित किया कि भैलू और उनके साथियों तक भोजन पहुंचा दिया गया है। हमने पत्रकार साथी को धन्यवाद बोला साथ ही भैलू से भ फोन पर बात की। भैलू जिसतरह से दुआएं दे रहा था उनको शब्दों में नहीं तौला जा सकता।इस समय इसप्रकार की भावनात्मक लगाव की ज्यादा जरूरत है।इसके साथ ही कोरोना के संदिग्ध लोगों के प्रति भी हमें दुर्भावना नहीं रखनी है। विशेष रूप से उन लोगो के प्रति जो क्वारंटीन में  है।इन लोगों में अपने भी हैं और पराए भी। अपने घर में रहते हुए भी दूरी बनाकर रहते हैं तो वे  परिवार के दूसरे सदस्यों को संक्रमित होने से बचा रहे हैं। परिवार से हटकर जो लोग क्वारंटीन में है वे भी दूसरों को कोरोना से बचा रहे हैं। श्री मोदी कहते हैं कि इन लोगों के प्रति हमारी भी जिम्मेदारी बनती है। इनका सहयोग करने की जरूरत है।यह समय रिश्तों को तरो-ताजा करने का है।रिश्तेदारों दोस्तों से बराबर सम्पर्क बनाए रखें  और लाकडाउन की अहमियत पर चर्चा करें।दुनिया में जो भी देश कोरोना की चुनौती का सामना कर रहे हैं वो सभी लाकडाउन जैसे कड़े कदम उठाने पर मजबूर हैं क्योंकि इस चुनौती से निपटने का दूसरा कोई विकल्प विग्यान नहीं  तलाश कर पाया है। हां विग्यान उसके इलाज की खोज कर रहा है और पूरी  दुनिया साथ में खड़ी है।
प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि कुछ लोगों को लगता है कि वे लाकडाउन का पालन करते हुए दूसरों की मदद कर रहे हैं यह भ्रम न पालें। लाकडाउन आपके खुद के बचने के लिए है। हां ये जरूर है कि हम स्वस्थ तो जग स्वस्थ का फार्मूला शाश्वत है। अभी आपको कयी दिनों तक इसी तरह का धैर्य  दिखाना है। मोदी ने चुनौतियों का सामना करने वाले वीरों को सलाम किया है। वह कहते हैं कि डॉक्टर  मेडिकल स्टाफ से  हमें प्रेरणा लेने की जरूरत है। इसके अलावा खतरों की परवाह किए बगैर लोगों की दैनिक जरूरतों जैसे सब्जी बेचने वाले फलवाले सफाई करने वाले व अन्य जरूरत का सामान पहुंचाने वाले लोगों से भी हमें सीखने की जरूरत है। मुश्किल के समय किराना की दुकान चलाने वाले  ई कामर्स बैंकिंग डिजिटल लेनदेन को संभव बनाने वाले भी कोरोना से जंग में अपनी तरह से  साथ दे रहे हैं। खरीदारों को  दूर-दूर खडाकर संक्रमण से बचाते हैं और जरूरत का  सामान भी उपलब्ध करा रहे हैं। इन सभी ने मोदी की भावना को समझा है लेकिन बडी संख्या में  पलायन करने वालों ने अभी  इस बात को नहीं समझ। हमें  अपने  प्रधानमंत्री की भावना को समझना चाहिए।       --अशोक मिश्रा/हिफी