सीय राम मय सब जग जानी-

  • राम हमारे हिन्दू धर्म की मर्यादा हैं। हमारे सामाजिक जीवन के सेतु हैं। राम.राम कहकर लोग अभिवादन करते हैं।
    छोटे बड़े मे कोई भेद नहीं होता यह हमें राम ने ही सिखाया। अयोध्या के राजकुमार हैं और निषाद राज को गले लगा
    रहे हैं। भीलनी के जूठे बेर खाने में कोई हिचक नहीं। हनुमान जी जब बताते हैं कि किष्किन्धा नरेश बालि ने अनुज
    सुग्रीव की पत्नी का अपहरण कर घर से बाहर निकाल दिया है तो क्षत्रिय होने के नाते इस प्रकार के अधर्म को सहन
    नहीं कर पाते और कहते हैं सुनु सुग्रीव मारिहउं बालिहि एकहिं बान। अन्याय और अत्याचार के विनाश के लिए ही
    भगवान ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था। महर्षि वाल्मीकि के आजानुबाहु राजपुत्र को गोस्वामी तुलसीदास ने
    सीयराम मय सब जग जानी करंउ प्रनाम जोरि जुग पानी कहकर सर्व व्यापक बना दिया। उनके राम मर्यादा पुरुषोत्तम
    हैं। उनके सेवक हनुमान तक के लिए कोई भी काम असंभव नहीं है कवन सो काज कठिन जग माही जो नहि होइ तात
    तुम्ह पाही। वही राम जब नर चरित करते है तब आधुनिक भारत के राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त को कहना पड़ा हे
    राम तुम ईश्वर नहीं हो क्या। सबमें रमे हुए मुझमें नहीं हो क्या। तब मैं निरीश्वर हूं ईश्वर छमा करे। तुम न रमो
    मुझमें मन तुममें रमा करे। ऐसे हैं राम जिन्होंने एक महिला से अभद्रता करने पर देवताओं के राजा इन्द्र के पुत्र को
    भी सजा देने में कोई रियाअत नहीं की और जब लंका पति रावण उनकी पत्नी का अपहरण कर लंका ले गया तो
    वनवासी होते हुए भी वन में ही वनचरों की सेना तैयार कर रावण का अहंकार तोड़ते हुए उसका वध कर दिया। इसके
    बाद अयोध्या वापस आकर राजकाज संभाला। इतने अच्छे राजा बने कि रामराज्य की आज भी मिसाल दी जाती है।
    उनका अवतार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को दोपहर में हुआ था। इसी महीने की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ब्रहमा जी ने
    स्रृश्टि की रचना की थी। हिन्दुओं के वर्ष का प्रारंभ भी इसी तिथि से होता है। पहले नौ दिनों तक शक्ति की उपासना
    नवरात्र के दौरान की जाती है। नवरात्र के अंतिम दिन रामनवमी को राम जन्मोत्सव मनाया जाता है। आमतौर पर
    चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही उत्सव मनाया जाने लगता था और अयोध्या में जहां भगवान राम ने राजा दशरथ के घर
    जन्म लिया था वहाँ का उत्साह तो अनूठा होता था। इस बार अयोध्या में राम जन्म भूमि विवाद का सुप्रीम कोर्ट ने
    फैसला सुनाया और विवादित स्थल विराजमान रामलला को मिल गया। राममन्दिर बनने की प्रक्रिया भी शुरू हो
    गयी है ।इसलिए सभी लोग यह अपेक्षा कर रहे थे कि रामनवमी बहुत ही धूम धाम से मनायी जाएगी ।तैयारी भी चल
    रही थी लेकिन कोरोना की बीमारी के चलते बाहरी उत्साह को भी भीतरी उत्साह में समाहित करना होगा। कोरोना से
    बचने और दूसरों को भी बचाने के लिए सोशल डिस्टेन्स अर्थात शारीरिक दूरी आवश्यक है। अपने के साथ दूसरों का
    भला करने की सीख भगवान राम ने भी दी है परहित सरिस धरम नहिं भाई राम भगवान हैं। यह सृष्टि भगवान ने ही
    बनायी। कोई जब इसे बिगाड़ने लगता है तब उसे संभालने के लिए विभिन्न रूप धारण करने पड़ते हैं। राम के रूप में
    भगवान का सातवां अवतार था। भगवान पृथ्वी पर कब अवतरित होते हैं इसके बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने

  • रामचरित मानस में कहा है जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी। करहिं अनीति जाइ नहिं
    बरनी।सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।।असुर मारि थापहिं
    सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु। जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु।
    इसी प्रकार की परिस्थितियां तब पैदा हुई जब राक्षसों का राजा रावण बना। रावण उसका भाई कुंभकर्ण और बेटा
    मेघनाद के अत्याचार से पृथ्वीवासी ही नहीं समूची सृष्टि परेशान हो गयी। पृथ्वी भ्रस्ट आचरण से परेशान होती है।
    आजकल कोरोना जैसी महामारी ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है तो इसके पीछे भी भ्रस्ट आचरण ही है। प्रकृति
    के साथ हमने खिलवाड़ ही नहीं किया बल्कि उसका विनाश करने पर उतारू हो गए हैं। राक्षसों के बारे में भी गोस्वामी
    तुलसीदास ने साफ.साफ कहा है बाढे खल बहु चोर जुआरा।जे लंपट पर धन पर दारा। जिन्हके यह आचरन भवानी। ते
    जानेहु निसिचर सब प्रानी। ऐसे निशाचरों का विनाश करना बहुत जरूरी होता है। भगवान राम के आदर्शों पर चलने के
    लिए ही रामनवमी हमें प्रेरणा देती है। बालक के रूप में भगवान राम अपनी माता कौशल्या को विराट रूप में दर्शन भी
    देते हैं। कौशल्या जी अपने बच्चे को सुलाकर ईष्ट देव को भोग लगाती हैं। वहां देखती है कि उनके दुलारे बेटे राम
    प्रसाद को खा रहे हैं। लौटकर वहाँ जाती हैं जहाँ बेटे को सुलाया था। बेटा राम वहाँ सो रहा था। परेशान हाल कौशल्या
    जी फिर पूजाघर जाती हैं तो वहां वही बालक प्रसाद ग्रहण कर रहा है। माता को विकल देख भगवान राम याद दिलाते हैं
    कि शतरूपा के रूप में आप ने और आपके पति राजा दशरथ ने राजा मनु के रूप में घनघोर तपस्या करके मुझे पुत्र के
    रूप में मांगा था। मैने अपना वचन पूरा किया। माता कौशल्या कहती हैं हे भगवन आप बालक के रूप में ही मुझे मां
    का सुख प्रदान करें। भगवान वही लीला करने लगे लेकिन आदर्श आचरण की सीख बराबर देते रहे। प्रातकाल उठि कै
    रघुनाथा। मात पिता गुरु नावहिं माथा। माता पिता की सेना करना हमारा पहला कर्तव्य है। माता पिता ही संसार में
    भगवान के जीवित स्वरूप होते हैं। माता पिता ही न होते तो हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। आजकल बच्चे बड़े होकर
    सिर्फ अपनी सुख सुविधाएं ही देखते हैं। यह पढ़कर कुछ लोग नाक.भौं सिकोड़ सकते हैं लेकिन यह सच्चाई है
    ।मोबाइल कल्चर ने तो और भी सेल्फिश बना दिया है। रामराज्य में इस प्रकार के आचरण भी शामिल हैं। बचपन से
    ही माता पिता और अपने से बड़ो का सम्मान करने की आदत पड़ जाए तो समाज में होने वाले कितने ही अपराध कम
    होजाएंगे।
    राम राज्य का यही पहला चरण है। दूसरा चरण समाजसेवा में सभी की सहभागिता का है। आज जब कोरोना जैसी
    महामारी का हम सामना कर रहे हैं और लाखों गरीबों मजदूरों को तत्काल राशन की जरूरत है तो सभी लोगों को हाथ
    बटाना पड़ रहा है। सब्जी वाले फलवाले दूध व अन्य सामान बेचने वाले चिकित्सा कार्य में लगे लोग अपना कार्य ठीक
    तरह से कर सकें और कोई बाधा न डाले ये शिक्षा भी भगवान राम ने अपने आचरण से दी है। उस समय के रिशि मुनि
    समाज के मार्गदर्शक होते थे। महामुनि विश्वामित्रऐसे ही मार्गदर्शक थे। राक्षस उनके कार्य में बाधा डालते थे। किशोर
    राम और लक्ष्मण ने राक्षस सुबाहु और ताड़का का वध करके मारीच को छेत्र बदर कर दिया था। इस प्रकार समाज
    सेवा का काम करने वालों का मार्ग निष्कंटक कर भगवान राम ने समाज सेवा करने वालों को भी संदेश दिया था।

  • राजनेताओं से लेकर अन्य समाज सेवा करने वाले यदि राम से सीख सकें तो उनका रामनवमी मनाना सार्थक होगा।
    रामराज्य का तीसरा चरण अन्याय करने वालों को दण्ड देना है। समाज तभी सुखी और समृद्ध हो सकता है जब
    अपराध करने वालों को दण्ड मिले। इतना ही नहीं अन्याय करने वालों का विरोध करने वाले को प्रोत्साहित भी किया
    जाए। भगवान राम ने ये दोनों काम किए । अन्याय करने वाले बालि का वध किया तो बालि के अन्याय का विरोध
    करने वाले सुग्रीव को राजा बना दिया। इसी प्रकार अपने अहंकार के चलते पृथ्वी पर अत्याचार करने वाले राक्षस राज
    रावण का वध किया और रावण के अत्याचार का विरोध करने वाले उसके भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया।
    इसीलिए आजानुबाहु राजपुत्र राम जन जन के भगवान बन गये। प्रजा की शिकायत सुनने वाला ऐसा कौन राजा होगा
    जो अपनी रानी को भी सजा सुनाने में एक पल की देरी न करे। आजकल के राजाओं के प्रतिरूप विधायक और सांसद
    दुराचार और हत्या जैसे अपराध करने के बाद भी सीना तान कर घूमते रहते हैं। राम के रूप में राज्य करने वाले
    उनकीतरफ देखते तक नहीं हैं। राम नवमी उनके लिए भी संदेश लेकर आती है।     -अषोक त्रिपाठी